20090429

राजस्थान में सितम्बर तक मौजा ही मौजा




आर.टी.डी.सी.
का स्पेशल मानसून पैकेज


मूमल नेटवर्क, जयपुर। तेज गर्मी में ठंड़े पड़े पर्यटन व्यवसाय को इस बार सर्दी के सीजन से पहले ही गति देने के लिए राजस्थान पर्यटन विकास निगम (आर.टी.डी.सी।) ने इस बार स्पेशल मानसून पैकेज तैयार किए हैं। आर.टी.डी.सी. का मानना है कि राजस्थान पर्यटन के लिए विदेशी पर्यटक भले ही सर्दियों का समय चुनते हों, लेकिन स्थानीय भारतीय पर्यटक मानसून के मौसम का भी जम कर लुत्फ उठाना जानता है। ऐसे में यह पैकेज उन्हीं के टेस्ट को प्रमुखता देते हुए तैयार किया गया है।

इसके लिए जुलाई 09 से सितम्बर 09 तक प्रदेश कि विभिन्न लोकप्रिय डेस्टीनेशन्स में रहने के किराए की आकर्षक रेंज पेश की है। इसके तहत माउण्ट आबू में 550 रु. से 1250 रु., सरिस्का में 600 रु. से 1750 रु. (शुक्रवार से रविवार तक के तीन दिन छोड़कर), झूमर बावडी सवाईमाधोपुर में 1150 रु. से 2000 रु., तथा विनायक सवाईमाधोपुर में 650 रु. से 1100 रु. तक की रेंज होगी। इस किराए में कमरे के किराए के साथ 125 रु. प्रति व्यक्ति के नाश्ते का मूल्य भी शामिल है। हां, यह भी नोट करें कि इस मूल्य में टेक्स शामिल नहीं है, वह अलग से लगेगा।


उल्लेखनीय है कि यह सभी डेस्टीनेशन्स राजस्थान की काफी मंहगे बजट वाली डेस्टीनेशन्स मानी जाती हैं, लेकिन विदेशी पर्यटकों के आने से पहले स्थानीय भारतीय पर्यटकों को यह मौका 'घर के लोगों' को पूरा लाभ दिए जाने की मंशा से दिया जा रहा है।इस मानसून टूर की बुकिंग के लिए फोन नम्बर 0141-5114766 पर या 011-23381884 पर सम्पर्क किया जा सकता है। इसके साथ ही आर.टी.डी.सी. की ई-मेल croho@rtdc.in पर भी सूचना दी जा सकती है। अधिक विवरण के लिए आर.टी.डी.सी. की वेब साईट http://www.rtdc.in/ का जायजा लिया जा सकता है।

20090418

नही बदला नजरिया विदेशिया का

पर्यटन की दुनियां में हो रही हलचलों पर नजर दौड़ाते हुए अचानक नजर एक पुरानी फिल्म पर ठहर गई। यह फिल्म जयपुर आए किसी विदेशी पर्यटक जैम्स पैट्रिक ने सन् 1932 में तैयार की थी। इस ब्लेक एडं व्हाट फिल्म का नाम रखा गया कलरफुल जयपुर 1932, इस फिल्म का वीडियो यूट्यूब की गैलेरी में उपलब्ध है।

लगभग आठ मिनट की इस फिल्म में वैसे तो आजादी से भी 15 साल पुराना जयपुर देखकर रोमांचित हुआ जा सकता है, लेकिन जो सबसे ज्यादा महसूस होने वाली बात लगी वह थी, जयपुर को देखने का विदेशी नजरिया। यह एक चौंकाने वाली बात है कि आज 75 साल बाद भी विदेशी पर्यटक के जयपुर दर्शन के नजरिए में कोई अंतर नहीं आया है। फिल्म में सन् 1932 में भी वही सब शूट किया गया है, जो विदेशी पर्यटकों द्वारा अब 2009 में भी किया जा रहा है।

फिल्म की शुरूआत त्रिपोलिया बाजार के नजारों से होती है। सड़क पर चल रहे यातायात में सामान से लदी बैलगाडिय़ां पर्यटक का मुख्य विषय है। सड़क पर काम करते सफाईकर्मी, बाजार की दुकानों के ऊपर कंगूरों पर बैठे बंदर, टीन शैड पर जा चढ़ी बकरियां, सड़क से गुजरती महिलाओं के परिधान, पुरुषों के साफे और टोपियां, सड़क लगी ताजा सब्जी की दुकानें, उनके आसपास व सड़क पर मंडराते आवारा पशु, कबूतरों के लिए डाले गए दानों को चुगते पक्षी, बेरोकटोक विचरते मोर, बंदरों के आगे खाने का सामान डालकर उनकी झीना-झपटी के दृश्य, हाथी पर सवारी करते साथी पर्यटकों का फिल्मांकन, मदारी, भिखारी और कुल मिलाकर 1932 में भी वही सब कुछ शूट किया गया है जो आज के पर्यटक भी शूट कर रहे हैं।

फिल्म को देखने का मौका मिले तो चूकिएगा मत। कुछ उदाहरण इस बात के भी हैं कि न जयपुर की व्यवस्था में ज्यादा अंतर आया है और न ही नागरिकों और दुकानदारों के रवैये में। सांगानेरी गेट पर यातायात संचालित करने वाले कर्मचारी तैनात हैं, लेकिन एक अपनी ड्यूटी का निर्धारित स्थान छोड़कर आपस में बातचीत करने के लिए दूसरे के पास आया हुआ है। यातायात का दबाव आज की तुलना में काफी कम है, फिर भी वाहनों की रेलपेल है। तेज गति से दौड़ती ऊंट गाड़ी की एक उतनी तेजी से आ रही मोटर से हुई जोरदार भिड़ंत का दृश्य यातायात व्यवस्था की पोल यहां भी खोलता लग रहा है। सड़क पर जगह घेर कर सब्जी और अनाज की दुकानें लगाने वाले, पक्की दुकान वालों द्वारा सामने सामान रखकर पैदल चलने वालों का हक मारने की प्रवृति सन् 1932 की इस फिल्म में भी नजर आती है।

आमेर के दृश्यों में केसर क्यारी की टूटी-फूटी मुंडेर साफ नजर आती है, जो उस समय में रखरखाव की जिम्मेदारी वहन करने वाले राज कर्मचारियों का रवैया बताती है।जयपुर के मदारियों का व्यंग आज की तुलना में कहीं ज्यादा तीखा नजर आता है। एक बंदरिया को केप और कसे हुए कपड़े पहना कर जमीन पर उसी मुद्रा में लेटने की ट्रेनिंग दी गई लगती है, जिस मुद्रा में विदेशी महिला पर्यटक समुद्र के किनारे पाई जाती हैं। कुता गाड़ी में जिस बंदर परिवार को सैर सपाटे के लिए निकला बताया गया है उसका पहनावा भी बहुत कुछ ऐसा कहता लगता है,जिसका यहां उल्लेख संभव नहीं है।

आप फिल्म देखते वक्त अगर एक बंदर की टोपी, उस पर लगे चिन्ह और चश्में को गौर से देखें तो आजादी से पहले की राजनीति का जायजा ले सकते हैं, खासकर इस टोपी वाले बंदर के अलावा शेष सभी बंदर अंग्रेजी कैप और टीर्शट वाले रखे गए हैं, पता नहीं क्यों? जो भी हो, मदारियों की निडऱता और व्यंग की धार आज के अनेक तथाकथितों के लिए भी दर्शनीय है। इसे देखने के लिए यूट्यूब तो है ही, नहीं हाथ आए तो गूगल के वेव सर्च पर जाकर कलरफुल जयपुर लिखिए और क्लिक करने पर सबसे ऊपर इसे ही पाएंगे।फिर भी बात नहीं बने तो ग्लोबल इमेज वक्र्स । कॉम पर भी इसे देखा जा सकता है। और इसके बाद भी नहीं मिले तो मूमल तो आपकी सेवा में है ही।