20161202

JAIPUR ART SUMMIT 2016 (4th Edition)

खंड-खंड  सी विशाल परिकल्पना   फोटो डॉ. ललित भारतीय 
जयपुर आर्ट समिट; बड़ा सा कैनवास, बिखरे से रंग   
जयपुर आर्ट समिट के बाद संबंधित लोगों के असली आचार-विचार को जानने और 
उन्हें समेट कर संजीदा पाठकों के लिए संतुलित करने में समय लगता ही है। 
...तो देर से ही सही, एक दुरुस्त समीक्षा, जिसे कला जगत के जुड़े गम्भीर कला प्रेमियों को जरूर जानना चाहिए।
अपने जीर्णोद्धार की प्रक्रिया से गुजरते हुए एक अर्से से सुनसान पड़ा जयपुर का रवीन्द्र मंच पिछले दिनों जयपुर आर्ट समिट के रंगों से सजकर फिर जीवन्त हो उठा।
लेकिन, रवीन्द्र मंच में शहर की सांस्कृतिक धडक़न को जीने वाले प्रशंसकों को इसकी खबर नहीं हुई।
इस साल समिट का चौथा एडीशन बीते तीन वर्षों में हुए आयोजन के मुकाबले ज्यादा बड़े कैनवास पर था। 
पांच दिन में 25 देशों के विदेशी कलाकारों सहित 478 प्रतिभागी कलाकारों के 593 काम। कला चर्चा के तहत 22 वक्ताओं की गुफ्तगू। समानान्तर चलते 3 कला शिविरों सहित 4 भित्तिचित्रांकन। 9 कला फिल्मों सहित 4 जीवन्त प्रदर्शन। गीत-संगीत, खान-पान और इनके कई साइड अफेक्ट सहित काफी कुछ था। 
यह बात अलग है कि सब इतना बिखरा-बिखरा था कि कहीं भी अपना पूरा प्रभाव नहीं छोड़ पाया।
जितना था उसका सबसे प्रभावी पहलू था, देश-विदेश की कुछ पारम्परिक कलाओं का प्रदर्शन। 
यहां आर्ट और क्राफ्ट के बीच की बारीक रेखा को या यूं कहें भारत सरकार द्वारा बनाई गई विभाजन रेखा को मिटाकर एक ही छत के नीचे समग्र कला का प्रदर्शन प्रशंसनीय था। समिट के मुख्य आयोजन प्रांगण के साथ अन्य अनेक स्थानों पर भी आयोजन की कडिय़ा जोडऩे का प्रयास किया गया।
अपनी कमजोरियों को ही अपनी ताकत बना कर प्रस्तुत करना कोर्पोरेट कल्चर की अपनी कला है। 
यहां भी वह कला देखने को मिली। 
जवाहर कला केन्द्र से निकलकर रवीन्द्र मंच को समिट के नए वेन्यू के रूप में प्रस्तुत किया गया। 
समिट के आयोजन को रवीन्द्र मंच सोसायटी का पूरा सहयोग नि:शुल्क मिला। 
शुल्क वसूला जाता तो वह लगभग 11 लाख रुपए होता।
सरकारी कला संस्कृति फंड से 4 लाख की आर्थिक स्वीकृति भी।
लेकिन, समिट की कम्पनी के सहयोगियों में सरकारी पक्ष नाम नदारत रहा।
संभव है सरकारी सहयोग कम्पनी के बजाय फाउंडेशन को मिला हो।
फिर भी सब कुछ सुखद था, लेकिन विशाल कैनवास पर बुने गए आयोजन को प्रभावशाली तरीके से सम्पन्न करवाना समिट आयोजकों के लिए मुश्किल साबित हुआ और विस्तार के लिए जोड़ी गई आयोजन की कडिय़ां बिखरती चली गई।
इस कदर बिखरी कि एक ही राजघराने में राजकुमारी से राजमाता होने जा रही दीया कुमारी जैसी आर्ट कलेक्टर से भी आयोजन का एक बड़ा और अहम हिस्सा छूट गया।
खास आगुंतकों में यही एक मात्र नाम उल्लेखनीय रहा, बस! 
ऐसे में आयोजक पनिहारों के लिए पनघट की डगर तो कठिन रही ही... कला के रसिक प्रेमी भी ठगे से रह गए। मानों कला रस की आसमानी बूंदों के प्यासे लम्बी चौंच वाले चकोरों को बड़े से थाल में फैलाकर पानी परोसा गया हो।
नतीजा यह कि दर्शकों का अभाव मुख्य मुद्दा रहा, इससे प्रतिभागी कलाकारों ने स्वयं को ठगा सा महसूस किया। कई सपने टूटे। खासकर सेल के।
वैसे तो ऐसे कला आयोजन होते ही सपने बेचने के लिए हैं। आयोजन सरकारी हो या निजी। कलाकारों द्वारा आयोजित हो या उन्हें दरकिनार करते हुए कोई कम्पनी कर रही हो। कहीं रंगों के सपने बिकते हैं, तो कहीं सपनों के रंग। कुल मिलाकर सफलता के सपनों की तिजारत होती है। 
जयपुर आर्ट समिट के फाउंडर डायरेक्टर शैलेंद्र भट्ट का सपना है कि... 
कला व कलाकारों की मजबूती की दिशा में प्रोफेशनल्स और आर्टिस्ट की सोच को मिला कर काम हो। 
कला निवेश व कलेक्शन केवल बड़े औद्योगिक घरानों के बूते से बाहर आए।
जयपुर में आर्ट प्रमोटर ही नहीं आर्ट इंवेस्टर्स का भी मनोबल बढ़े।
कला में निवेश करने वाले यहां भी है...।
जानकारों के अनुसार लब्बो लुआब यह कि कला को मिलकर कैश किया जाए।
किसी परिचय के निराश्रित आयोजन के एक अन्य स्तम्भ आर.बी. गौतम का सपना है कि...
समिट कला की सभी विधाओं को मंच प्रदान करते हुए कला उत्थान करे।
कलाकारों को रिसर्च वर्क करने के साथ स्टडी मैटेरियल भी मिले।
यहां आयोजकों की पैनी सोच और प्रस्तुत सपनों में सब शामिल हैं, नहीं है तो बस आम कलाप्रेमी।
वह कला प्रशंसक वर्ग जो कला को सम्मान भी देता है और सराहना भी।
लेकिन, यह वर्ग कला के लिए कैशलेस है। 
इसलिए कलाकार और कम्पनी दोनों के लिए यह फालतू वर्ग अवांछित है।
कायदे से बुलाया नहीं तो यह खुद्दार वर्ग आयोजन में नजर भी नहीं आया।
...और इससे किसी को कोई फर्क भी नहीं पड़ा। 
प्रतिभागी कलाकारों को इससे  जरूर फर्क पड़ा कि ‘काम के लोग’ भी नहीं आए।
कलाकारों का कहना था कि आयोजन स्थल परिवर्तन करने के साथ आयोजकों को इस नई जगह का जितना प्रचार करना चाहिए था... उतना नहीं किया गया। 
आर्ट समिट दर्शकों के रूप में एक दिन कुछ स्कूली बच्चे जरूर आए जो समिट जैसे बौद्धिक आयोजन के लिए किसी भी रूप से पर्याप्त नहीं थे। 
जो कुछ लोग आए भी तो उन्हें कोई यह बताने वाला नहीं था कि कौन सी चीज कहां डिस्प्ले की गई है?
...या ग्राउण्ड के अलावा पहली, दूसरी मंजिल के साथ बेसमेंट में भी देखे जाने के लिए बहुत कुछ है।
बात डिस्प्ले की चली तो प्रतिभागी कलाकारों का एक बड़ा समूह इससे भी नाखुश था। उनका कहना था कि कलाकृतियों की ऐसी भरमार देखकर लगता था कि कृति चयन को पूरी तरह नजर अंदाज किया गया। 
एक कलाकार ने यहां तक कहा कि आर्ट सलेक्शन का आधार रेवेन्यू कलक्शन और रिलेशन फै्रक्शन अधिक रहा। कम्पनी में अब मात्र दो कलाकार शेष हैं और वे भी जितना कर सकते थे, वह किया।
अराजकता का आलम यह कि मुख्य आयोजन स्थल के परे जो कला शिविर हुए उनके प्रतिभागियों के नाम व काम अन्तिम दिन तक नहीं बताए जा सके। जानकारों का कहना था कि विभिन्न शिविरों व अन्य कलाकर्म में कई कलाकारों को रिपीट किया गया।
आर्ट समिट के लिए कारीगरों की तरह काम करने वाले कलाकारों के लिए इतनी बख्शीस का हक तो बनता है। 
रवीन्द्र मंच पर आयोजित पांच दिवसीय कला शिविरों में तैयार कृतियां भी समिट के समापन तक प्रदर्शित नहीं की जा सकी। दो बाहरी परिसरों में तैयार कलाकृतियां तो उन परिसरों से बाहर ही नहीं निकल सकीं।
बच्चों के वर्कशॉप में तैयार कृतियों का भी केवल एक हिस्सा ही प्रदर्शित हो सका। 
कलाकार कैटलॉग से भी नाराज नजर आए... कि आयोजकों द्वारा किए गए वादे के अनुरूप उनका पर्याप्त परिचय उसमें नहीं दिया गया। कई कलाकारों के शहर व राज्य के नाम भी गलत छापे गए।
आयोजकों का कहना है कि उनके अनुरोध के बाद भी सब कलाकारों ने  पूरी जानकारी नहीं दी, जिसने जितनी और जो जानकारी दी वही प्रकाशित की गई।
उद्घाटन से लेकर समापन तक समिट के कई डायरेक्टर व सलाहकार सहयोगी अनुपस्थित रहे। 
दूसरी और जो समिट के वास्तविक सहयोगी उपस्थित रहे उन्हें नजरअन्दाज किया गया।
फोटो डॉ. ललित भारतीय 

इस साल समिट में खान-पान का बढ़ा हुआ दायरा व स्तर सुखद था।
दोपहर वाले भोज के लिए जयपुर के प्रसिद्ध प्रतिष्ठानों से मंगाए पैकेट उपलब्ध थे।
बोतल बंद पानी भी।
बस! बड़े भोज के कारण व्यवस्था में कुछ बदलाव हुए।
बीते सालों में जहां भोजन के लिए प्रतिभागियों को आग्रह पूर्वक आमंत्रित किया जाता रहा, इस साल प्रतिभागियों को समिट के जिम्मेदार कार्यकर्ताओं से कुपन मांग कर भोजन प्राप्त करना था।
अपनों के लिए अपनों द्वारा की गई व्यवस्था थी, इसलिए किसी ने बुरा नहीं माना।
वैसे अन्य बड़े आयोजनों की तरह कुपन वितरण की सम्मानजनक व्यवस्था हो सकती थी।
पहले समिट में ऐसा हुआ भी था। 
समिट की कुख्याति बन चुका विवाद एक बार फिर समिट को मीडिया की सुर्खियों तक ले गया। इसके केवल चेहरे बदले थे अन्दाज व कार्यशैली समान थी। 
जिस कलाकार की कृति पर विवाद उपजाया गया वो समापन तक मुख्यमंत्री के आने की प्रतीक्षा में भावविभोर दिखा। संभवत समिट के तीसरे एडीशन में विवाद बाद मुख्यमंत्री का आगमन उसकी आशाओं की प्रेरणा रही हो।
समिट के फीकेपन का मुख्य कारण शहर में कला विद्यार्थियों को साथ लेकर आयोजित किया गया वो कला आयोजन भी था जो समिट की तयशुदा तारीखों पर ही रचा गया। 
युवाओं का रुझान तो उस समकक्ष आयोजन की तरफ होना ही था... लगभग एक सौ युवाओं को आयोजकों के खर्च पर ना केवल रचनाकर्म करने का अवसर मिला वरन् पहली बार जयपुर में आयोजित  आक्शन में उनकी कृतियां शामिल हुईं। जिन्हें पर्याप्त मूल्य भी मिला। 
....युवाओं की छोडि़ए समिट टीम के सदस्य भी प्रमुख सलाहकारों के रूप में उस समानान्तर आयोजन में शामिल हुए। 
कुल मिलाकर कार सेवकों ने अपनी क्षमता के अनुरूप समिट की पर्याप्त सेवा की। 
इसका असर समिट पर नजर भी आया।
यही परिदृश्य रहा तो संभव है कम्पनी का आगामी जयपुर आर्ट समिट जयपुर के बाहर हो।
साल दर साल आर्ट समिट में विदेश से आने वाले कलाकारों की संख्या में खासा इजाफा हो रहा है।
समिट की बढ़ती लोकप्रियता वैश्विक कला मंच पर इसके बढ़ते प्रभाव की एक बानगी है।
समानान्तर आयोजन का मकसद जो भी रहा हो, लेकिन समिट में नहीं आ सके नवोदित चितेरों से वैश्विक होती कला से रूबरू होने का एक अवसर छिन गया.... जबकि इसी आयोजन में शामिल अनुभवी व स्थापित कलाकार दोनों जगह नजर आते रहे।
कुछ कलाकार भले ही अब समिट के आयोजन में पहले से सक्रीय नजर नहीं आते, लेकिन उनमें से कुछ की उपस्थिति नजर आती रही। यही वह विशालता है, जिसका अनुभव करते हुए मन उनका अभिनंदन करता है और तन स्वत: उनके सम्मान में खड़ा हो जाता है।
यह सवाल अलहदा है कि ऐसे कलाकार हैं ही कितने?
कला के विविध आयामों और मानकों को पूरा कर रहे जयपुर आर्ट समिट में इस बार जयपुर के लोक नाट्य तमाशा को भी शामिल किया गया जो इस बात की गवाही देता है की समिट इस कलाकार बिरादरी को भी मंच देने की कोशिश कर रहा है।
कुल मिलाकर सामान्य कला मेला बनकर रह गए असाधारण समिट की विशाल परिकल्पना के बड़े कैनवास को सम्पूर्ण सफलता के रंग से रंगा जा सकता था।
सालभर योजनाबद्ध काम करने के बाद भी ऐन आयोजन के वक्त होच-पोच वाली स्थिति यही इंगित करती है कि आयोजकों की तैयारी आयोजन की विशाल रचना के अनुरूप पर्याप्त नहीं थी। 
थी भी तो जिनके लिए रचना रची गई हो यदि वो ही नहीं तो रचना का क्या महत्व और क्या औचित्य?
कला पर विवाद: सीन-दर-सीन

जयपुर आर्ट समिट में इस साल फिर हुए बवाल के बाद ऐसी कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं जिनके बारे में कला जगत से जुड़े संजीदा लोगों को जरूर जानना चाहिए। 
जयपुर आर्ट समिट का लगातार तीसरा वर्ष है जब कला पर बवाल हुआ है। आखिर क्यों होता है बवाल? 
अनुभवी कला प्रेमी अब समझने लगे हैं, होता नहीं... प्रायोजित किया जाता है।
पिछले दो साल की गणित का फलादेश मूमल ने पाठकों के समक्ष उजागर किया था, लेकिन इस वर्ष कुछ पाठकों ने ही मूमल को सारी गणित बताई और घटनाक्रम पर ध्यान देने को कहा।
अब हम आपके समक्ष संजीदा पाठकों द्वारा बताए उन दृश्यों को सिलसिलेवार पेश कर रहे हैं...बस।
# इस बार कला प्रमियों को आर्ट समिट में किसी विवाद की आशंका नहीं होती, क्यों कि युवा कलाकारों का वह गुट विशेष इस वर्ष आर्ट समिट में नजर नहीं आ रहा जिन्हें ऐसे विवाद प्लांट करने का जिम्मेेदार माना जाता रहा है। 
सुबह जयपुर के स्थानीय सिटी भास्कर में एक कलाकृति को चिन्हित करते हुए उसमें अश्लीलता  की तलाश करते हुए पिछले दो सालों में हुए विवादों को सचित्र याद कराया जाता है।
इस खबर को देखते हुए एक न्यूज चैनल के वरिष्ठ कार्यक्रम संयोजक एक टॉक शो प्लान करते हैं। इस शो में कथित अश्लीलता का विरोध करने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जिस महिला को चुना जाता है। उनको जानने-पहचानने वालों की संख्या किसी आम व्यक्ति को जानने वालों से अधिक नहीं होती। लगभग यही स्थिति उस महिला संगठन की होती है जिसका वह बार-बार उल्लेख करती हैं। कला जगत का पक्ष रखने के लिए काफी प्रयासों के बाद चैनल को कलाकार मीनाक्षी भारती कासलीवाल उपलब्ध होती हैं। मध्यान्न 12 बजे इस टॅाक शो का प्रसारण होता है। जाहिर है जयपुर आर्ट समिट व इसमें प्रदर्शित कलाकृतियां इसका प्रमुख विषय होता है।
इस दौरान सुबह 12 बजे से ही रवीन्द्र मंच पर स्थानीय मीडिया का जमावड़ा होने लगता है। संवाददाता व कैमरामैन इधर-उधर धूप सेकते हुए टाइम पास कर रहे होते हैं।
# न्यूज चैनल पर टॉक शो की समाप्ति के बाद अश्लीलता का विरोध कर रही महिला सामाजिक कार्यकर्ता रवीन्द्र मंच पर नजर आती हैं। सामाजिक कार्यकर्ता के साथ दो अन्य महिलाएं और होती हैं। ये सब एक लाल कार में होती हैं जिस पर बड़े-बड़े शब्दों में ‘प्रैस’ लिखा है। इनकी अगवानी के लिए लम्बे बालों व दाढ़ी वाले बड़ा लाल टीका लगाए एक और हिन्दु संगठन के कर्ताधर्ता वहां पहले से उपस्थित होते हैं।
# चैनल के टॉक शो में जिस कृति को केन्द्र में रखकर चर्चा की गई थी इसे आयोजकों ने सुबह स्थानीय अखबार देखकर ही हटा लिया था। ऐसे में कथित अश्लीलता विरोधी सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए वहां कुछ नहीं था।
# दाढ़ी वाले से चर्चा के बाद तीनों महिलाएं सीधे बेसमेंट की ओर बढ़ जाती हैं। दाढ़ी वाला वहां पहले से पहले से जमें मीडिया कर्मियों को महिलाओं की ओर जाने का संकेत करता है। बेसमेंट में एक खास कलाकृति के पास भी मीडिया के कुछ कैमरे पहले से तैनात हैं। इनमें उस चैनल का कैमरा प्रमुखता से शामिल है जिस चैनल पर कुछ देर पहले तक इसी महिला सामाजिक कार्यकर्ता के साथ टॉक शो आयोजित किया गया था।
# विरोधी महिला सीधे एक चुनिंदा कलाकृति के पास पहुंचती है और उसे उतार कर ले जाने लगती है। संबंधित कलाकार विरोध करता है। कुछ अन्य कलाकार भी उसके पक्ष में आते हैं। अब दाढ़ी वाला सामने आता है और अपशब्द बोलते हुए कलाकारों पर महिलाओं से धक्का-मुक्की करने का आरोप लगाते हुए उन्हें घमकाता है।
# बवाल से रवीन्द्र मंच के अधिकारी व कर्मचारी चिंता में पड़ जाते हैं। आर्ट समिट के लिए सक्रीय एक कलाकार रवीन्द्रमंच के चिंतित कर्मचारी को यह कह कहते हुए चिंता नहीं करने को कहता है कि परेशान न हों कुछ देर की बात है, फिर सब ठीक हो जाएगा।
# अश्लीलता का विरोध कर रही महिलाएं कलाकृति को बाहर खुले में ले आती हैं। मीडिया कैमरों के लिए उसका प्रदर्शन करते हुए आर्ट समिट में इसके प्रदर्शन का विरोध करती हैं। भीड़ में लोग जानना चाहते हैं कि महिला कौन हैं? इसके बाद महिला के साथी महिला का विजिटिंग बांटने लगते हैं। इसी बीच दाड़ी वाला भी अपना विजिटिंग कार्ड बांटता नजर आता है।
# समिट के प्रतिभागी कलाकार आयोजकों के सामने सवाल उठाते हैं कि आखिर उनकी कलाकृतियों की सुरक्षा की क्या व्यवस्था है? आयोजक सुरक्षा के लिए रवीन्द्र मंच को जिम्मेदार बता कर अपना पल्ला झाडऩे का प्रयास करते हैं। रवीन्द्र मंच व्यवस्थापक तत्काल यह स्पष्ट करते हैं कि उनकी ओर से केवल स्थान उपलब्ध कराया गया है। शेष सारी जिम्मेदारी आयोजकों की है।
इस बीच विरोध प्रदर्शित कर रही महिलाएं उस पेंटिंग को अपने साथ ले रवाना जाती हैं। आयोजक उन्हें रोकने का कोई प्रभावी प्रयास नहीं करते।
किसी की सूचना पर रवीन्द्र मंच पर पुलिस पहुंचती है। वह आयोजकों से माजरा समझ रही होती है, इसी बीच पुलिस को सूचना मिलती है कि विरोध कर रही महिलाएं उस पेंटिंग को लेकर पुलिस थाने पहुंच गई हैं। पुलिस आयोजकों को साथ लेकर उल्टे पैरों थाने लौट जाती है।
थाने में विराधी महिलाओं और आयोजकों के बीच अश्लीलता और अभिव्यक्ति की आजादी पर लम्बी बहस होती है। इससे उकताए हुए पुलिस अधिकारी एक ओर आयोजकों को विवाद ग्रस्त पेंटिंग का प्रदर्शन नहीं करने की सलाह देते हैं तो दूसरी ओर विरोध कर रहीं महिलाओं को पेंटिंग उठा लाने और कानून को अपने हाथ में लेने के लिए फटकार लगाते हैं।
अगले दिन आशा के अनुरूप आर्ट समिट का विवाद, विवाद खड़ा करने वाली महिला, विवाद से जुड़ी पेंटिंग और संबंधित कलाकार सुर्खियों में थे। आयोजक और कलाकार इस प्रचार से पुलकित थे और घटना पर खेद व्यक्त करने के लिए मुख्यमंत्री वसंधरा राजे के आने की बाट जोहने लगे थे। 
स्थिति सामान्य होने पर पुलिस अपनी कार्रवाई शुरू करती है और घटनाक्रम की कड़ी से कड़ी से जोड़ते हुए कुछ ही देर में दाढ़ी वाले सामाजिक कार्यकर्ता तक पहुंच जाती है। उसे शांति भंग करने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है, लेकिन इसे मीडिया से जगजाहिर नहीं किया जाता। क्योंकि पुलिस अब तक इस सारे ड्रामें के पीछे छुपे प्रचार पाने की मंशा को भांप चुकी थी।
अपने निर्देशक की गिरफ्तारी के बाद विरोधी महिलाएं अगले दिन फिर रवीन्द्र मंच पर नजर आती हैं। इस बार वे काली पट्टी बांध कर नारे लगाने की योजना बनाते हुए मीडिया के इंतजार में होती हैं, लेकिन मीडिया के पहुंचने से पूर्व ही पुलिस उन्हें वहां से हटा देती हैं।
कोर्ट में पेश किए जाने के बाद आरोपी की जमानत पर रिहा होता है, लेकिन अगले ही पल पुलिस उसे कुछ अन्य धाराओं में पुन: गिरफ्तार कर लेती है। अब पुलिस इसे किसी बड़े पूर्व नियोजित षडय़ंत्र का हिस्सा मानकर मामले की जांच कर रही है। एक-एक कर कई नाम और पक्ष बेपर्दा हो रहे हैं। उल्लेखनीय है इनमेें आयोजन से जुड़े कुछ अति सक्रिय कालाकार व कार्यकर्ताओं के नाम भी शामिल हैं। पुलिस मामले की तह तक पहुंच कर मास्टर माइंड को समझना चाहती है।
इससे पूर्व दो वर्ष के विवादों में विवादित कृतियों का प्रदर्शन करने वाला गुट और इन कृतियों का विरोध करने वाला सामाजिक संगठन दोनों वर्षों में एक ही थे। इस वर्ष जहां एक खास कलाकार की कृति को चुना गया, वहीं इसका विरोध करने वाला संगठन भी बिलकुल नया था।

समारोह के दौरान रह-रह कर मुख्यमंत्री के अचानक आने की हवाई सुर्रियां छोड़ी जाती रही, लेकिन एक बार इलाके के पुलिस कप्तान के अलावा कोई नहीं आया। मुख्यमंत्री आगमन को लेकर कलाकार की आस तो समिट के समापन तक कायम थी, उसका मानना था कि पिछली बार ऐसा ही हुआ, तब भी तो सीएम आई थी तो इस बार क्यों नहीं? आयोजक उसे अंत तक धैर्य रखने को समझा रहे थे।

सारांश: इन सब दृश्यों के परिदृश्य में क्या नीहित था? ‘मूमल’ ने विवाद से जुड़े द़श्यों को सीन दर सीन आपके सामने बिना किसी लाग-लपेट के ज्यों का त्यों प्रस्तुत किया। अब सुधि पाठक और कला प्रेमी स्वयं ही सब समझ जाएंगे कि इस पूरे प्रयोजित कार्यक्रम में किसकी क्या और कितनी भूमिका संभव है?

जयपुर आर्ट समिट: दूसरे दिन का कला कारवां
 मूमल नेटवर्क, जयपुर। जयपुर आर्ट समिट का दूसरा दिन अपने तयशुदा काय्रक्रमों के अनुसार रफ्तार पकड़ ही रहा था कि दोपहर होते-होते अवांछित विवाद के फेर में पड़ गया। यहां हम इस विवाद का समाचार के रूप में जिक्र नहीं करेंगे क्योंकि इस प्रायोजित विवाद को  अभी  तूल देना दुर्भाग्यपूर्ण होगा। (विवाद की तथ्यात्मक समीक्षा अगले अंक में )
आज सिंगापुर की कुमुद क्रोविदी व शिवाली माशुर की पुस्तक 'इण्डियन फोक आर्ट पेंटिंग्स-एन इंटरोडेक्शन'  का विमोचन किया गया। आर्ट टॉक व डिस्कशन के पहले सत्र में कोलकत्ता के देबासीस भट्टाचार्य व अरिंदम दास ने 'यूज ऑफ वीजुअल लैंग्वेज इन एक्सप्रेशन' पर चर्चा की। दूसरे सत्र में मुंबई के अशोक मिश्रा एवं दुर्ग के तुषार वाघले ने 'चैलेंजेस एण्ड अप्रोचुनिटीज इन आर्ट फिल्म मेकिंग' पर अपने विचार व्यक्त किए। आर्ट मूवीज में आज रंजीत रे की डाक्यूमेंटरी फिल्म 'क्ले इमेज मेकर्स ऑफ कुमरातुली' तथा  तुषार वाघले की शार्ट फिल्म 'शेडो ऑफ थॉटस' की स्क्रीनिंग की गई। क्रिएटिव वर्कशॉप में नई दिल्ली की कलाश्री संस्था द्वारा वूमेन एम्पॉवरमेंट पर महिला कलाकारों की वर्कशॉप का समिट के बैनर तले आयोजन किया गया। पारम्पिक कलाओं के डेमोस्ट्रेशन में आज भील आर्ट, गोंड ट्राईबल आर्ट एवं छाऊ मास्क मेकिंग का भी प्रदर्शन किया गया।
आर्ट परफोमेंस में आज दो प्रस्तुतियां हुई। नई दिल्ली की कविता ठाकुर का कथक नृत्य तथा ढाका बांग्लादेश के अशीम हाल्दार सागोर व साथियों की भावपूर्ण प्रस्तुति। हाल्दार की प्रस्तुति ने अपस्थित जनों पर गहरी छाप ही नहीं छोड़ी बहुत कुछ सोचने पर भी मजबूर कर दिया। नेगेटिव विचारों व समाचारों की अवहेलना कर अपने भविष्य को पॉजिटिव सुरक्षित जीवन देने की अपील करता यह परफोमेंस दिल छूने वाला था। कलाकार व साथी इसमें अखबारों को समाज का हर देश का प्रतिनिधि मान उनमें छपने वाली नेगेटिव खबरों से बरी होने की बात कहते हैं। परफोमेंस में वो बताते हैं कि सबका खून एक ही है विचार भले ही अलग-अलग क्यों ना हो। इसमें वो नेगेटिव विचारों का प्रतीक मान कागजों की होली जलाते हैं। लाल गुलाल उड़ा कर बताते हैं कि सबका खून एक जैसा है फिर कैसा भेद। मुख्य कलाकार अपने चेहरे पर सपुेद रंग पोतकर शांति व निश्पत्राता की अगुवाई करते हुए आग के बीच घिरे तीन पोधे को जो भविष्य का प्रतीक हैं उठाकर अपने चेहरे पर लपेट कर उन्हें सुरक्षाकवच देता है।


जयपुर आर्ट समिट: पहले दिन का कला कारवां
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जयपुर आर्ट समिट के पहले दिन उद्घाटन सत्र के सम्पन्न होते-होते आर्ट वर्कशॉप की शुरुआत हो गई। कलाकारों की कूचि से निकले रंग कैनवास पर कृतियों को जीवन्त करने लगे। कई सामाजिक संदेशों को स्वयं में समेटे रंग-बिरंगे इंस्टालेशन कलाप्रेमियों को अपने पास कुछ देर ठहरने के लिए मजबूर कर रहे थे। रवीन्द्र मंच के बेसमेंट में बनी सातों गैलेरियां व प्रथम तल की गैलेरी कलाकृतियों से सज गईं। लिम्का बुक में स्थान पाने वाली कृतियों ने भी लोगों का मन मोहा।
पहले दिन की मुख्य गतिविधियां-
आर्ट टॉक व डिस्कशन: इसके पहले सत्र में मुबई की अनुजा स्वामी के साथ जयपुर के गौरव भटनागर ने 'डिजिटल आर्ट, पेपर जू पिक्सल' पर व्याख्यान दिया। दूसरे सत्र में 'छ मेकर्सपर्सपेक्टिव-आर्टस, क्राफ्ट्स एण्ड डिजाईन' विषय पर जयपुर के आयुष कासलीवाल के साथ मुंबई के स्वरूप विश्वास ने अपने मत को शब्दों द्वारा व्यक्त किया और लोगों के पूछे गए प्रश्रों का सटीक जवाब देते हुए उनकी जिज्ञासा शांत की। यह सत्र काफी रुचिकर रहा। जयपुर के मूर्तिशिल्पी हिम्मत शाह जो इस सत्र का हिस्सा थे, उपस्थित नहीं हो सके।
बुक रिलीज: नई दिल्ली के दिनेश कुमार की पहली पुस्तक 'द स्ट्रीम-पोयट्री विद पेंटिंग' का विमोचन हुआ।
आर्ट मूवी: समिट के पहले दिन लोगों ने दो आर्ट मूवीज का आनन्द लिया। पहली शार्ट फिल्म यूक्रेन के थॉमस स्चूमचर की 'अ पेंटर इन द वुड' तथा दूसरी भारत के सुकांकन रॉय की एनीमेशन फिल्म 'साउण्ड ऑफ जॉय' थी।
क्रिएटिव वर्कशॉप: पहला दिन सिंगापुर के आर्ट बाय स्ट्रोक आर्ट स्टूडियो के नाम रहा। इन्होने इण्डियन फोक आर्ट पर अपनी क्रिएटिविटी दिखाई।
आर्ट एण्ड म्यूजिकल परर्फोमेंस: उद्घाटन सत्र में मुंबई के इमरान खान का सितार वादन व शाम ढलने के साथ नई दिल्ली के चिन्मय त्रिपाठी के गायन ने समां बांधा। इसके साथ ही बैंगलूर के जीतिन रेंघर ने अपनी कलात्मक प्रस्तुति से लोगों का दिल जीता।
डेमोस्ट्रेशन ऑफ ट्रेडीशनल आर्ट फार्मस: भारत के कई अंचलो से जुड़ी लोक कलाओं के साथ कुछ विदेशी देशों की पारम्परिक कलाओं का डेमोस्ट्रेशन अनूठा अनुभव रहा। इनमें चाइनीज वुडब्लॉक, खातमकारी, रगस वीविंग, मधुबनी पेंटिंग, सेंड पेंटिंग, सिरेमिक, मीनाकारी, वॉटर कलर पेंटिंग, मिनिएचर, फिगरेटिव, थंगका पेंटिंग, पिछवाई की कलाकारों ने जीवन्त प्रस्तुति दी। इसके साथ सेंड कास्टिंग, मोलेला टेराकोटा व जोगी आर्ट भी दर्शाए गए। यह सभी कलाएं समिट के शेष चारों दिन भी प्रस्तुत की जाएंगी।

जयपुर आर्ट समिट में मूमल पोर्टल का लोकार्पण
मूमल नेटवर्क, जयपुर। कला पत्रकारिता के लिए ख्यात मूमल के वेब पोर्टल का आज समिट के आर्ट टॉक व डिस्कशन सेशन के दौरान कलाकारों व कलाप्रेमियों की उपस्थिति में लोकार्पण किया गया। मूमल के वेब पोर्टल को समिट के फाउण्डर एस.के. भट्ट ने लांच किया। कलाकारों ने मूमल के इस कदम का स्वागत करते हुए पोर्टल को कला जगत के लिए आवश्यक व उपयोगी बताया।

इस अवसर पर मूमल की संस्थापक गायत्री ने मूमल को शीर्ष पर पहुंचाने के लिए संपादक राहुल सेन, आर्टिस्ट डॉ. अनुपम भटनागर, अपनी टीम व समस्त कलाकारों को धन्यवाद दिया। उन्होने कहा कि एस.के. भट्ट द्वारा मूमल के लिए बोले गए शब्द, 'मूमल कला जगत का गूगल है।'  ही इस वेब पोर्टल के बनने और कला जगत के सामने आने का आधार बना। मूमल की कला यात्रा व पोर्टल की जानकारी देते हुए उन्होने कहा कि, 11 वर्ष पहले आरम्भ हुए मात्र चार पन्नों के ब्लैक एण्ड व्हाइट इस प्रकाशन ने कला के प्रति अपनी प्रतिबद्धता निभाते हुए 16 पेज के रंगीन अखबार तक का सफर तय किया और आज ऑन लाईन वेब पोर्टल के रूप में कला जगत को समपिँत है। उन्होने कहा कि मूमल पूरी टीम का कला के प्रति जुनून रहा कभी व्यवसाय नहीं बना और ना ही कभी बनेगा।

क्या है खास पोर्टल में
इस पोर्टल में देश-विदेश की कला गतिविधियों, जानकारियों व खबरों के साथ विद्यार्थियों के लिए कला प्रश्रोत्तरी, अपकमिंग इवेंट, कला जगत की जानी-मानी हस्त्यिों द्वारा गेस्ट राईटर के रूप में लिखे गए महत्वपूर्ण लेख, मूमल विशेष की गंभीर व बेबाक लेखनी,  देश-विदेश के कला बाजार की महत्वपूर्ण खबरें उपलब्ध हैं। इनके साथ ही महत्वपूर्ण कला संस्थाओं व अकादमियों के लिंक भी दिए गए हैं। भविष्य में यह लिंक बढ़ते जाएंगे।
इसी  के साथ मूमल के इस पोर्टल में ऑन लाईन आर्ट गैलेरी भी है। मूमल वेब पोर्टल की एडरेस है www.moomalartnews.com
 (Photo: Dr. Lalit Bhartiya)

गरिमापूर्ण सादगी से आरम्भ हुआ जयपुर आर्ट समिट का चौथा एडीशन
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जयपुर आर्ट समिट का चौथा एडीशन शहर की सांस्कृतिक धड़कन रवीन्द्र मंच पर आज शुरु हो चुका है। सुबह 11 बजे आमन्त्रित कलाकारों के साथ बहुत ही सादगी और गरिमामय अन्दाज में समिट का उद्घाटन हुआ। उद्घाटन अवसर पर समिट के फाउण्डर एस.के. भट्ट के साथ गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में मंचासीन नामचीन कलाकार लक्ष्मा गौड़ , अंजनी रेड्डी, स ंयुक्त अरब अमीरात स्थित एटेलियर हबीब के संस्थापक व पार्टनर आकिफ हबीब व समिट के डायरेक्टर महावीर प्रताप शर्मा ने उपस्थित जनों को सम्बोधित किया।
अपने स्वागत भाषण में बोलते हुए समिट फाउण्डर एस.के. भट्ट ने कहा कि, कला की पूरी दुनिया में सिर्फ  एक ही भाषा है और वह स्वयं 'कला' ही  है।  लक्ष्मा गौड़ ने कहा कि आर्ट को सही दिशा में केन्द्रित होना चाहिए। जयपुर आर्ट समिट जैसे आयोजन दूसरे शहरों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। उन्होंने इस तरह की गतिविधियों में कला विद्याार्थियों की अधिक से अधिक भागीदारी की आवश्यक्ता पर बल दिया।
आर्टिस्ट अंजनी रेड्डी ने अपने सम्बोधन में कहा कि विभिन्न आर्ट एक्टिविटीज, क्रिएटिव वर्कशॉप्स, पारम्परिक कला स्वरूपों के डेमोस्ट्रेशन, इंस्टालेशन व आर्ट फिल्मों के प्रदर्शन के साथ जयपुर आर्ट समिट मेगा इवेंट बन गया है। आकिफ हबीब ने आयोजन के प्रति खुशी जाहिर करते हुए कहा कि 25 देशों के कलाकारों के साथ 29 देशों के कलात्मक कार्यों को एक ही छत के नीचे देखना खुशी की बात है। इस अवसर पर डायरेक्टर महावीर प्रताप शर्मा ने समिट की कला यात्रा व उपलब्धियों का वर्णन किया।
कला प्रदर्शनियों व आर्ट कैम्प का उद्घाटन जयपुर राजघराने की राजकुमारी व सवाईमाधोपुर की विधायक दीया कुमारी ने किया। इस अवसर पर समिट के कैटलॉग का विमोचन भी किया गया। उद्घाटन समारोह में रंग भरने के लिए दिल्ली के कलाकार इमरान खान व साथियों ने संगीतमय प्रस्तुित दी।
जयपुर आर्ट समिट की बदलती तस्वीर
कला संसार के केनवास पर तेजी से उभरते इस आयोजन की बदलती तस्वीर ने कला जगत की कई पुरानी धारणाएं और मिथक तोड़े हैं। नए-नए प्रतिमान स्थापित हो रहे हैं। इन्हें जानने के लिए आपको बरस दर बरस इसमें हुए बदलावों का करीबी जायजा जरूर लेना चाहिए।
एडीशन-1  (2013 )
जयपुर आर्ट समिट की शुरुआत उस सपने का परिणाम थी जिसमें राजस्थान की राजधानी जयपुर को एक बहुत बड़े कला प्लेटफार्म के रूप में देखा गया था। सपना सच होने लगा... जब समिट का पहला एडीशन 2013 में जयपुर ही नहीं वरन् देश-दुनिया के आगे अपनी पूरी प्रतिबद्धता से सामने आया और सफल हुआ। समिट के पहले एडीशन की सफलता के पीछे जहां कला के लिए सर्वस्य समर्पण की भावना छुपी थी वहीं आगे और अधिक अच्छा....और अधिक बड़ा करने का जुनून भी।
समिट का पहला एडीशन जयपुर के प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप, जवाहर कला केन्द्र, राजस्थान फोरम तथा होटल क्लार्क आमेर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया। समिट के चेहरे कोई भी रहे हों, किन्तु आत्मा रही कॉपरेट जगत के शैलेन्द्र भट्ट,  जिन्होने कला के प्रति अपने जुनून के चलते इस आयोजन को सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया।
7 से 11 नवंबर तक आयोजित पहले एडीशन का आयोजन दो जगहों पर सम्पन्न हुआ, होटल आमेर क्लार्क व जवाहर कला केन्द्र। समिट की चेयरपर्सन थीं टिम्मी कुमार व कन्वीनर मृदुल भसीन। कलाकारों व आमन्त्रित खास मेहमानों को सम्मानित करने के लिए दिए जाने वाले मोमेन्टो के रूप में चीनी मिट्टी के मग बनवाए गए जिन पर जाने-माने कलाकारों की कृतियां अंकित थीं। प्रदर्शनी के साथ गैलेरीज शो, कला चर्चाएं, सेमीनार, लाइव डेमोस्ट्रेशन, आर्ट वर्कशॉप, इंस्टॉलेशन व कई महत्वपूर्ण कला रूपों का प्रदर्शन इस एडीशन की खासियत रही। समिट का उद्घाटन तत्कालीन राज्यपाल मार्गेट अल्वा ने किया। समिट में देश-विदेश के कलाकारों ने शिरकत की। तमाम राजनीति और गुटबाजी के बावजूद आयोजन को सराहना मिली।

एडीशन-2 (2014)
पहले आयोजन में सामने आई राजनीति और गुट बाजी के बाद समिट का दूसरा एडीशन 2014 में 14 से 18 नवंबर के बीच कई अन्दरूनी व बाहरी बदलाव के साथ कला जगत के सामने आया। उद्घाटन होटल आमेर क्लार्क में हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पद्मश्री डॉ. सरयु दोषी उपस्थित थीं। विशिष्ट अतिथि के रूप में कला संस्कृति विभाग प्रमुख सचिव शैलेन्द्र अग्रवाल और जवाहर कला केन्द्र के तत्कालीन महानिदेशक उमरावमल सालोदिया। चैयरपर्सन टिम्मी कुमार व कन्वीनर मृदुल भसीन आगंतुकों मेहमानों का स्वागत करती नजर आईं। उद्घाटन अवसर को संगीतमय किया प्रसिद्ध वायलिन वादिका अनुप्रिया देवताले ने।
समिट के दूसरे एडीशन तक आते-आते इसमें कॉरपोरेट जगत की भागीदारी बढ़ चुकी थी। जयपुर आर्ट समिट का प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी के रूप में रजिस्ट्रेशन हो चुका था। कॉरपोरेट जगत के दिनेश कुकरेजा, महावीर प्रताप शर्मा, नीरज रावत बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के रूप में सामने थे। साथ ही जयपुर आर्ट समिट फाउण्डेशन भी अस्तित्व में आ गया था। अब कला जगत के लिए एक कम्पनी भी थी और एक एनजीओ भी। आर्ट समिट का अस्थाई कार्यालय होटल आमेर क्लार्क की चारदीवारी से बाहर निकल मालवीय नगर स्थित एक आर्ट कैफै में पहुंच गया था। समिट की व्यवस्थित कार्य प्रणाली ने राजस्थान, खासतौर पर जयपुर में इस मिथक को पहली बार खण्डित किया कि कला क्षेत्र के ऐसे आयोजन करने को कोई कलाकार या कलाकारों का समूह ही सक्षम होता है।
समिट के इस एडीशन में कला की ग्यारह विधाओं को 35 कलाकारों ने प्रस्तुत किया जिनमें चार अन्य देशों के कलाकार शामिल थे। इन विधाओं में प्रमुख रूप से वीडियो आर्ट शामिल हुआ। पहले एडीशन की तरहा ही आयोजन स्थन होटल आमेर क्लार्क व जवाहर कला केन्द्र रहे।
इस एडीशन की एक नई बात रही विवाद। उदयपुर के मूर्तिकार भूपेश कावडिय़ा का इंस्टालेशन, जिसमें टायलेट पॉट पर कुछ धार्मिक चिन्हों को दर्शाया गया था। एक सामाजिक संगठन ने विरोध किया, तोड़-फोड़ हुई और समिट को कलाकार की ओर से माफी मांगनी पड़ी। मामला मीडिया में चर्चित रहा, संबंधित कलाकारों व समिट को अतिरिक्त कवरेज मिला।
एडीशन-3 (2015)
समिट के तीसरे एडीशन में पहले व दूसरे वर्ष के कई सहयोगी विलग हुए तो कई सहयोगियों के पद व अधिकार सिमट गए, लेकिन समिट का दायरा और बढ़ा। इस एडीशन के साथ ही समिट के अपने ऑफिस  में समिट का काम-काज आरम्भ हुआ। तीसरे एडीशन का आयोजन 21 से 25 नवंबर 2015 को हुआ। आयोजन स्थल केवल एक ही रखा गया, जवाहर कला केन्द्र का शिल्प ग्राम। तीसरे एडीशन में 12 देशों के कलाकार शामिल हुए।
इस वर्ष उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि थे कला संस्कृति विभाग के प्रमुख सचिव शैलेन्द्र अग्रवाल और गेस्ट ऑफ ऑनर थे कलाकार ललिता लाजमी, गोगी सरोजपाल व आकिफ हबीब। इस वर्ष समिट में तीन विदेशी गैलेरीज भी अपने संग्रह के साथ प्रस्तुत हुईं। कला की नई विधा के रूप में साइट स्पेसफिक आर्ट अपनी छोटी सी बानगी के साथ शामिल हुआ। बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें स्कूली बच्चे खुलकर रंगों के साथ खेले। कॉलेज के विद्यार्थी स्ट्रीट आर्ट की प्रस्तुति के साथ समिट का हिस्सा बने। एक विशेष बात यह रखी गई कि सेमीनार के लिए रजिस्ट्रेशन की अनिवार्यता को समाप्त करते हुए खुले प्रांगण में पेपर पढ़े गए। कलाप्रेमियों ने इसका खुला आनंद भी लिया। परफार्मिंग आर्ट के रूप में बंगाल के ‘बाउल’ लोक संगीत को चुना गया।
पिछले वर्ष के अनुभव के बाद इस वर्ष फिर एक विवाद हुआ। गाय की डमी पर विवाद। इस बार भी विवाद में उन्हीं युवा कलाकारों के गुट की कृति थी। फिर वही सामाजिक संगठन अपने विरोधी तेवरों के साथ सामने आया। भारी हंगामें के बीच पुलिस ने कलाकार व उसके सहयोगियों को गिरफ्तार किया। बाद में छोड़ दिया गया। यह अफवाह भी फैली कि अभिव्यक्ति की आजादी व पुलिस जुल्म के खिलाफ कुछ  कलाकार अपने सरकारी सम्मान लौटाएंगे। इस विवाद की चर्चा से अखबारों के कॉलम अच्छे खासे रंगे गए। यह ख्याति मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी समिट के प्रांगण तक ले आई।
बाद में यह चर्चा भी रही कि विवाद संयोग से हुआ या प्रायोजित किया गया? पुलिस, प्रशासन व सरकार स्वयं को ठगा सा महसूस करती रही। जवाहर कला केन्द्र ने अगले आयोजन के लिए समिट को स्थान उपलब्ध नहीं कराने का मन बना लिया। इसके बाद समिट आयोजकों को भी ऐसे डिजायनर कलाकारों और उनके संरक्षकों से किनारा करना पड़ा।
एडीशन-4 (2016)
....और अब समिट का चौथा एडीशन 7 से 11 नवंबर तक जयपुर के रवीन्द्र मंच पर आयोजित हो रहा है। जो समिट के बोर्ड में प्रमुखता से शामिल थे वे भी सलाहकारों की सूचि में सिमट गए हैं। समिट के प्रमुख सहयोगी  व कई बड़े कलाकार के रूप में पहचान पा रहे कई कलाकार इस वर्ष समिट टीम में शामिल नहीं हैं।
जयपुर में एक पुराना मिथक टूट चुका हैं कि एक बड़े ग्रुप विशेष की सहमति व सहयोग के बिना कला की कोई भी गतिविधि यहां असंभव है। वह बड़े कलाकार जो समिट के बोर्ड में प्रमुखता से शामिल थे वे आज सलाहकारों की सूचि में सिमट गए हैं। ग्रुप के प्रमुख समिट से जरूर अलग हो चुके हैं लेकिन उनके संगी-साथी और अनुयायी अभी भी किसी ना किसी रूप में समिट से जुड़े हुए हैं। वो साथ टीम के सदस्य के रूप में हो या फिर अपनी कृति प्रदर्शित करने वाले कलाकार के रूप में।
समिट के रूप में जयपुर या राजस्थान के कला जगत के बरसों पुराने मिथक टूटे हैं तो कई नए आयाम जुड़े भी है। बड़े कलाकार नामों से मोहभंग करते हुए समिट के फाउंडर डायरेक्टर की साहसिक पहल पर बोर्ड ने एक बेहतरीन कदम की शुरुआत की है, नए विचारों के साथ सामने आए युवा कलाकारों को जोडने व समिट जैसे बड़े होते चले जा रहे आयोजन में प्लेटफार्म उपलब्ध करवाने की।
कला विधाओं का दायरा भी बढ़ाया गया है। विशेष बात कि लोक कलाओं के डेमोस्ट्रेशन पर बल दिया गया है। समिट के बढ़ते कद का सबूत और क्या होगा कि उसमें शामिल होने की चाह रखने वाले देश के कुछ हिस्सों के कलाकार झूठी बात प्रचारित कर रहे हैं कि हमारी कृति भी समिट की प्रदर्शनी में शामिल है।

जयपुर आर्ट समिट का नवरंग
मूमल न्यूज, जयपुर। जयपुर आर्ट समिट का चौथा संस्करण रवीन्द्र मंच मंच के साथ आठ अन्य स्थानों पर भी अपने रंग बिखेरेगा। इनमें अजमेर की शुभदा संस्था के स्पेशल बच्चों की वर्कशॉप में समिट के रंग पहले ही खिल चुके हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार रवीन्द्र मंच में होने वाले प्रमुख आयोजन के साथ ही 8 दिसम्बर को टोंक में ‘यूनीसेफ’ के साथ मिल कर बाल कलाकारों के लिए कैेंप होगा। जयपुर के समीप चौमू कस्बे में 9 दिसम्बर को समिट में आमंत्रित कुछ अतिथि कलाकार एक आर्ट कैंप में काम करेंगे। इसी क्रम में 10 दिसम्बर को कानोता में आर्ट कैंप होगा।
इसके अलावा समिट की ओर से जयपुर के चार प्रमुख स्थानों पर ग्राफिटी के तहत मुंबई के दो कलाकार अमोल व अनिल स्ट्रीट आर्ट के रूप में वॉल पेंटिंग्स कर रहे हैं। इनमेें से एक कार्य पूरा भी हो चुका है।



शुभदा संस्थान में 'ट्रयू आर्ट बाय ट्रयू हार्ट' का आयोजन 
मूमल नेटवर्क, अजमेर। मानसिक विमंदित बच्चों के लिए कार्यरत शुभदा संस्थान द्वारा संचालित स्पेशल स्कूल में आज बच्चों की पेंटिंग वर्कशॉप 'ट्रयू आर्ट बाय ट्रयू हार्ट' का आयोजन किया गया। बच्चों ने इस वर्कशॉप का भरपूर इंज्वाय करते हुए रंगों से अठखेलियां की। अपने मन की आकृति और अपने मन के रंग, चित्रांकन के नियमों से हटकर एक अल्हड़ व खुशी भरी अद्भुत रचना करते नन्हें रचनाकार। स्पेशल बच्चों की मासूमियत से भरी कृतियों के रंग बार-बार पिकासो के उस कथन की याद दिला रहे थे कि 'चित्र सिद्धान्त के अनुरूप चित्रांकन करना हमेशा से सरल था लेकिन जब बच्चों की तरह चित्र बनाने की शुरुआत की तो बहुत कठिन साधना साबित हुई।' दुनिया के माने हुए चित्रकार की कठिन साधना इन बच्चों के हाथों से बहुत ही सरलतम रूप से फिसल कर जब कागज पर कोई रंगबिरंगी आकृति का रूप लेती तो लगता मानों कई पिकासो एक साथ आकर कला रचना में जुट गए हैं।
स्पेशल बच्चों की यह आर्ट वर्कशॉप कला जगत में तेजी से उबरते 'जयपुर आर्ट समिट'  की देखरेख में आयोजित की गई थी। वर्कशॉप में तैयार कुछ रचनाएं जयपुर आर्ट समिट के चौथे एडीशन में 7 से 11 दिसम्बर तक जयपुर स्थित रवीन्द्र मंच वर प्रदर्शित की जाएंगी।
जयपुर आर्ट समिट का चौथा एडीशन रवीन्द्र मंच में
7 से 11 दिसम्बर तक गुलजार रहेगा रंग-तरंग संसार
मूमल नेटवर्क, जयपुर। जयपुर आर्ट समिट का चौथा एडीशन कला के विविध रंगों के साथ इस बार जयपुर के रवीन्द्र मंच परिसर पर आयोजित होगा। अपने पुर्ननिर्माण की प्रक्रिया से गुजर रहे रवीन्द्र मंच में इन दिनों समिट की तैयारियां चल रही हैं। हालांकि समिट के आरंभ होने तक रवीन्द्र मंच का मुख्य हॉल तैयार नहीं हो पाएगा, फिर भी शेष तैयार हो चुके हिस्सों में कला के बढ़ते आयामों के साथ प्रस्तुत होने वाला यह आयोजन इस वर्ष 7 से 11 दिसम्बर तक अपने रंग बिखेरने को तैयार है।
कभी जयपुर की सांस्कृतिक धडक़न माने जाने वाले रवीन्द्र मंच में इस वर्ष समिट में जहां 25 देशों के कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे वहीं देश-विदेश की 15 गैलेरीज अपने संग्रह का प्रदर्शन करेंगी। गैलेरीज के साथ समिट की एग्जीबिशन में देश विदेश के 125 आर्टिस्ट्स का काम भी प्रदर्शित किया जाएगा।
यह होंगे समिट के प्रमुख आकर्षण
-इंटरनेशनल आर्टिस्ट कैम्प व इंटरेक्टिव सेशन
-आर्ट एग्जीबिशन व गैलेरीज शो
-कैलीग्राफी
-आर्ट इंस्टॉलेशन (इंडोर व आउटडोर)
-आर्ट टॉक व डिस्कशन
-बुक रिलीज
-आर्ट मूवीज
-क्रिएटिव वर्कशॉप
-आर्ट परर्फोमेंस
-डेमोस्ट्रेशन (इंडोर व आउटडोर)
इन कार्यक्रमों के साथ लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज लारजेस्ट सक्र्यृलर कैनवास पेंटिंग का प्रदर्शन, एक सिंगल कैनवास पर भगवान गणेश की 4500 छवियों के अंकन का प्रदर्शन, फोटोग्राफी कॉन्टेस्ट व एग्जीबिशन, मधुबनी पेंटिंग में रामायण, बॉलीवुड के 104 वर्षों के सफर को समेटे पोस्टर्स का प्रदर्शन किया जाएगा। इस वर्ष देश के माने हुए कार्टूनिस्ट सुधीर तैलंग ने अपनी जीवन यात्रा समाप्त करते हुए दुनिया के साथ कला जगत को अलविदा कहा। इस महान कार्टूनिस्ट को याद करते हुए समिट उन्हें भावभीनी श्रृद्धांजलि अर्पित करेगा। समिट के चौथे एडीशन का समापन समारोह 11 दिसम्बर की शाम 6 बजे होगा।
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